मध्य प्रदेश के प्रमुख जनजातीय (famous Tribal personality of MP ) मध्य प्रदेश का गौरव है यहाँ की जनजातीय ने अपना नाम इतिहास में दर्जकराया है तो चलो आज इनके’द्वारा किये गए योगदान इनके परिश्रम को जानते है, मध्य प्रदेश की जनजाति व्यक्तित्व : भीमा नायक ,राजा राजा नरेश, संग्राम शाह ,खजाना नायक ,अवंती बाई ,जमुना देवी ,गुंजन सिंह कोरकू ,दिलीप सिंह भूरिया कांतिलाल भूरिया, मीना सिंह मांडवे ,शंकर शाह रघुनाथ शाह, ठक्कर बापा, टंट्या भील इत्यादि
भीमा नायक ( Tribal personalities of MP)
भीमा नायक
- जन्म 1840
- जन्म स्थान निमाड़ रियासत के पांच मोहली गाँव
- इनको निमाड़ का रॉबिनहुड भी कहा जाता है
- 1857 की क्रांति का नेतृत्व बड़वानी के सेंधवा क्षेत्र से किया था
- शाहिद भीम्मा नायक प्रेरणा केंद्र बड़वानी के धाबा बावड़ी में है
- कार्य क्षेत्र : बड़वानी रियासत से लेकर महाराष्ट्र के खान देश तक रहा
- युद्ध : भीमा नायक ने 1857 के अंबा पानी का युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
- मुलाकात :1857 की क्रांति में जब तात्या टोपे निमाड गए थे तो उनकी मुलाकात भीमा नायक से हुई थी
- भीमा नायक शहादत दिवस : 29 /12 /1876 पोर्ट ब्लेयर में शहीद हुए थे
- भीमा नायक का स्मारक : धाबा बावड़ी यहां पर स्मारक केंद्र भी है
- सजा :इन्हें 8 सालों तक कला पानी की कैद मिली थी
- पिता का नाम धन सिंह
- माता का नाम सुरश्री
- भीमा नायक भील जनजाति से संबंधित थे
- उनके नाम से एक कॉलेज शहीद भीमा नायक गवर्नमेंट पीजी कॉलेज स्थापित किया जो की बड़वानी में स्थित है
- शहीद भीमा नायक सागर प्रोजेक्ट नर्मदा की सहायक नदी गोई पर है जो की बड़वानी के गांव पंचकूला में है
Tribal personalities of MP
टंट्या भील
- आदिवासी नायक और निमाड़ का गौरव कहे जाने वाले तात्या भील मामा का जन्म 1842 में पश्चिम निर्माण के वीरी ग्राम में हुआ था
- उनका वास्तविक नाम ताँतिया भील था
- आदिवासी जनता के साथ हो रहे शोषण और उनके मौलिक अधिकारों के विरुद्ध आवाज उठाई
- अंग्रेजों से लूटे हुए धन का आम जनता में बांट देने के कारण उन्हें बिजली जनजाति के लोग प्यार से चँदिया मामा कहते हैं
- इसी कारण आज भी बहुत से आदिवासी घरों में टंट्या भील को देवताओं की तरह पूजा की जाती है
- भील लोगों का मानना है की उनके पास अलौकिक शक्ति है इन्हें मालवा का रॉबिन हुड भी कहा जाता है और यह उपाधि इन्हें अंग्रेजों द्वारा दी गई थी
- इनके पिता का नाम भाव सिंह था
- और उनकी स्मारक समाधि पातालपानी जो की इंदौर में स्थित है
- इन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने 7 वर्ष के परिश्रम के पश्चात 1888-89 ईस्वी में इन्हें गिरफ्तार किया |
- उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया जिसके तहत उन्हें 4 दिसंबर 1889 को फांसी दे दी गई
- मध्य प्रदेश शासन द्वारा शिक्षा एवं खेल गतिविधियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले आदिवासी युवाओं को जननायक टंट्या भील राज्य स्तरीय सम्मान प्रदान किया जाता है
- जिसके अंतर्गत ₹100000 सम्मान निधि एवं प्रशस्ति पत्र दिया जाता है
tribal personalities of mp
राजा नरेश चंद्र सिंह
- रामगढ़ के राजा एवं पूर्व रियासत के राजा
- रवि शंकर शुक्र के मंत्रिमंडल में 1952 में मंत्री भी रहे थे
- मध्य प्रदेश के प्रथम आदिवासी जनजाति कल्याण मंत्री भी रहे थे
- मध्य प्रदेश के एकमात्र और पहले आदिवासी मुख्यमंत्री भी रहे जिनका कार्यकाल मात्र 13 दिन का था 13 मार्च 1969 से 25 मार्च 1969
- इन्होंने रायपुर में अध्ययन किया था
- 1948 से 1949 में नैनपुर में आयोजित आदिवासी सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे थे
- यह चतुर्थ विधानसभा के समय मुख्यमंत्री थे
खाज्या नायक
- 1857 को क्रांति में निमाड़ क्षेत्र के आदिवासी में क्रांति का नेतृत्व बीमा राव के साथ खजननायक ने भी किया, इनका जन्म निमाड़ क्षेत्र के सांगली ग्राम में हुआ था
- आदिवासी क्रांतिकारी खजाना नायक के पिता गमान नायक अंग्रेज के चौकीदार थे 1833 ई में उनकी मृत्यु के पश्चात चौकीदार का पद पुत्र खाज्या को प्राप्त हुआ
- खाज्या नायक अंग्रेजों की भूल पलटन में शामिल हुए जहां उन्हें सेंधवा जानती चौकी से सिरपुर चौकी तक के 24 मील लंबे मार्ग की चौकीदारी का जमा सोंपा गया
- उन्होंने 1831 से 1851 तक अपने कार्य को पूर्ण निष्ठा एवं ईमानदारी से किया, परंतु एक बार गश्त के दौरान एक अपराधी को उन्होंने मार दिया, जिसके लिए इन्हें 10 वर्ष की सजा हुई | किंतु अच्छे आचरण के कारण 5 वर्ष में इन्हें रिहा कर दिया गया था
- अंग्रेजों द्वारा अपेक्षा के कारण उनके मन में अंग्रेजों के प्रति गुस्सा उत्पन्न हुआ ,और प्रतिशोध की भावना से वह अपने बहनोई बीमा नायक से जा मिले यही से उन्होंने भीलों को की सेवा बनाकर निर्माण क्षेत्र में 1857 की क्रांति का नेतृत्व किया
- अंग्रेजो सरकार ने खजाना नायक पर ₹1000 का इनाम घोषित किया
- 1 अप्रैल 1858 को बड़वानी और सिलावट के बीच स्थित अंबापानी गांव में अंग्रेजों एवं भील सेवा का युद्ध हुआ जिसमें खाज्या नायक के पुत्र दौलत सिंह मारे गए तथा कर्नल जेम्स आउट्रम ने खज्जा नायक को मार दिया
- मध्य प्रदेश शासन द्वारा 17 अप्रैल को खजाना नायक शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है
शंकर शाह
- रानी दुर्गावती के वंशज थे गोंड राजघराने से संबंध था
- इनका गढ़ मंडला के गोंड शासक शंकर शाह का जन्म 1783 में हुआ था
- इनके पिता सुमेर शाह यह महारानी दुर्गावती के प्रतापी वंशज थे जिन्होंने 1857 की क्रांति का नेतृत्व महाकौशल क्षेत्र से किया था
- 1857 की क्रांति के समय शंकर शाह कंपनी के पेंशनर थे और पूर्व में अपने पुत्र रघुनाथ शाह का साथ निवास कर रहे थे
- जबलपुर में स्वतंत्रता संग्राम का उद्भव शंकर शाह के प्रयासों से हुआ , जो अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े हुए
- इनका प्रमुख कारण अंग्रेजों की 52 वी रेजीमेंट का कमांडर संपूर्ण महाकौशल की जनता को परेशान कर रखा था जनरल क्लार्क के अत्याचारों को खत्म करने के उद्देश्य से शंकर शाह ने जनता और जमींदारों को साथ लेकर संघर्ष का ऐलान किया
- 1857 की क्रांति में जबलपुर का नेतृत्व शंकर शाह ने किया ,जिसकी स्थिति तात्कालिक समय के झांसी कानपुर अवध तथा मेरिट की तरह ही थी
- उन्होंने 11 जुलाई 1857 को असंतुष्ट सैनिको , जमींदार को मालगुजारो बुद्धिजीवियों के साथ ही अंग्रेजों की 52 भी पल्टन को भी अपने साथ मिलाया और समूचे महाकौशल में क्रांति को प्रसारित किया
- खुशाल चंद्र नमक गद्दार ,राजमहल की सभी जानकारियां अंग्रेजों को देता रहा
- लेफ्टिनेंट क्लार्क ने अपने वफादार चपरासी को नकली फकीर बनाकर राजमहल भेजा | उसे समय मऊ ,मेरठ दमदम ,बेकारपुर छावनियों में क्रांतिकारी साधु ,फकीर विभिन्न प्रकार के वेश और रूप धारण करके क्रांति का कार्य करते थे
- राजा शंकर शाह इसी धोखे में रहे और अपना उद्देश्य बात बैठे उसे नकली फकीर ने राज भेद लिया और आकर जानकारी दी
- अंग्रेज अफसरों ने गुप्त मीटिंग की और योजना बनाकर 14 सितंबर 1857 ई को राजा शंकर शाह युवराज रघुनाथ व 13 अन्य क्रांतिकारियों को बंदी बनाकर कैंटोनमेंट के मिलिट्री जेल में डाल दिया
- रानी फूलकुंवर देवी अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकर महल से निकलकर क्रांतिकारियों का नेतृत्व करने लगी
- राजा शंकर शाह की गिरफ्तारी के पश्चात राजमहल की तलाशी ली गई तो राजमहल विद्रोह के घेरे दस्तावेज मिले इसी को आधार मानकर जबलपुर के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया और सजा मौत सुना दी गई
- दिनांक 18 सितंबर 1857 को पीता हुआ पुत्र को टॉप के मुहाने पर बांधकर तोप चला दी गई
लाल पदमधर सिंह
- गांधीवादी विचारक एवं रीवा राज्य के प्रमुख नेता लाल पदमधर सिंह का जन्म सतना जिले के कपालपुर ग्राम में हुआ था
- इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में रीवा राज्य में आदिवासियों को नेतृत्व किया
- 9 अगस्त 1942 को प्रारंभ हुए भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने प्रमुखता से भाग लिया
- 13 अगस्त 1942 को विद्यार्थी यूनियन के तत्वाधान में निकले जुलूस पर अंग्रेजों ने गोली चलाई जिसमें लाल पदम दर सिंह नेतृत्व करते हुए तथा राष्ट्रवाद संभालते हुए गोली लगने से शहीद हो गए
गुंजन सिंह कोरकू
- यह गांधीवादी विचारक एवं स्वतंत्रता सेनानी थे
- इनका जन्म बैतूल जिले के घोड़ा डोंगरी ब्लॉक के छतरपुर गांव में हुआ था
- गांधी जी के आवाहन पर घोड़ा डोंगरी बैतूल में 1930 में जंगल सत्याग्रह का आयोजन रंजन सिंह कौर को द्वारा किया गया
- सन 1930 में अंग्रेज सरकार ने गुंजन सिंह पर ₹500 का इनाम भी घोषित किया था
- सन 1936 ईस्वी में गुंजन सिंह को की मृत्यु हो गई
- इसी जंगल सत्याग्रह हमें गुंजन सिंह कोरकू साथी बंजारे सिंह कोरकू ने अपने प्राणों का बलिदान दिया
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रानी अवंती बाई
- रानी अवंती बाई का जन्म 16 अगस्त 1831 को सिवनी जिले के मनकेड़ी ग्राम में जागीरदार राव जुझार सिंह लोधी के घर हुआ था
- क्रांतिकारी अवंती बाई बचपन से ही साहसी कन्या थी
- उन्हें तलवारबाजी एवं युद्ध का बहुत शौक था
- रानी अवंती बाई का 17 वर्ष की आयु में रामगढ़ के राजा विक्रमादित्य सिंह से विवाह हुआ था राजा विक्रमादित्य के स्वर्गवास के बाद रानीने दक्षता पूर्वक राजकाज संभाला
- 15 जनवरी 1858 को वेलिंगटन के द्वारा घुघरी पर अधिकार करते हुए रामगढ़ की और जाने पर रानी और वेलिंगटन के बीच युद्ध हुआ
- देव हरगढ़ के जंगल में रानी की मुट्ठी भर सैनिक और अंग्रेजी सेवा के बीच युद्ध हुआ रानी के सभी सेवा मारी गई रानी अंग्रेज के हाथ लगने की वजह अपनी तलवार से अपने वतन की रक्षा की खातिर बलिदान हो गई रानी अवंती बाई की समाधि डिंडोरी जिले के शाहपुर के पास बालपुर गांव में स्थित है
- महाराष्ट्र सरकार postal Department ने इनके नाम पर Stamp जारी किया
- अवंतीबाई पहली महिला शाहिद वीरांगना थी
- नर्मदा पर्वत विकास संस्था के तहत जबलपुर में बना Dam इन्ही के नाम पर है
रानी दुर्गावती
- रानी दुर्गावती 1524 महोबा के प्रसिद्ध चंदेल राजवंश की वंशज और गढ़ा कटंगा के गोंड साम्राज्य की रानी ने बड़े साहस और नेतृत्व के साथ मुगल साम्राज्य की ताकत का मुकाबला किया
- गोंड जनजाति मध्य प्रदेश के प्रमुख जनजाति है जो अपनी समृद्धि सांस्कृतिक विरासत और लचीलेपन के लिए जानी जाती है
- रानी दुर्गावती ने दुश्मन के हाथों में पढ़ने के बजाय मौत को गले लगाना चुना
- ऐसा कहा जाता है कि उनका जन्म दुर्गा अष्टमी के त्योहार पर हुआ था इसलिए उनके माता-पिता ने हिंदू देवी दुर्गा के नाम पर उनका नाम दुर्गावती रखा वह देवता का मानवीय अवतार साबित हुई
- आज उन्हें अपनी संस्कृति के रक्षक और गौरव और सम्मान के प्रतीक के रूप में उनके बलिदानों के लिए याद किया जाता है
ठक्कर बापा
- आदिवासीयो का मसीहा भी कहा जाता है
- 1914 में भारत सेवक समाज की स्थापना की
- गांधी जी की प्रेरणा से और स्पष्ट निवारण संघ जो बाद में हरिजन सेवा संघ के महासचिव भी रहे
- वास्तविक नाम अमृतलाल ठक्कर
- राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि जब जब निस्वार्थ सेवकों की याद आएगी ठक्कर बप्पा की मूर्ति सामने आकर खड़ी हो जाएगी
- संविधान सभा के सदस्य भी रहे
- 1922 भील सेवा मंडल की स्थापना करी गयी थी
- गांधी जी प्यार से बप्पा कहते थे
- गोंड सेवक संघ को वनवासी सेवा मंडल भी कहा जाता है
बादल भाई
- स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमर शहीद बदरपुर का जन्म 1845 लगभग छिंदवाड़ा जिले की परासिया तहसील के ग्राम डूंगरिया तितरा में हुआ था
- 1923 में तामिया में आयोजित कांग्रेस की बैठक में बदल भूमि के नेतृत्व में हजारों आदिवासियों ने भाग लिया स्वतंत्रता सेनानी श्री अर्जुन सिंह सिसोदिया के अनुसार ,श्री बादल भूमि ने अपने साथियों के साथ जिला अध्यक्ष के बंगले को घेर लिया और सरकारी खजाने पर ढाबा बोल दिया जिसके परिणाम स्वरूप ने हत्या आदिवासी क्रांतिकारी पर लाठी चार्ज हुआ और श्री बादल भाई का गिरफ्तार कर लिया गया
- बादल बाई ने स्वतंत्रता सेनानी श्री विश्वनाथ सालपेकर के नेतृत्व में 21 अगस्त 1930 को रामकोना में जंगल कानून तोडा इस पर ब्रिटिश सरकार ने बादल भाई को महाराष्ट्र जेल में रखकर जहां 1940 के में जहर के कारण उनकी मौत हो गई
- राज्य सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को प्रकट करने के लिए छिंदवाड़ा में स्थित संग्रहालय का नाम “शिव बादल भाई राज्य जनजाति संग्रहालय” रखा गया।
धीर सिंह
- जन्म 1820 रीवा राज्य
- महाराजा कुमार लाल जी सिंह के नाम से जाना जाता है
- 1857 के विद्रोह से संबंधित
- शंकर शाह की मृत्यु के बाद में रणमत सिंह के साथ बुंदेलखंड और बघेलखंड क्षेत्र के सक्रिय रहे
- जब शंकर शाह नहीं रहे तो उनकी मृत्यु के बाद में बुंदेलखंड और बघेलखंड में रणमत सिंह के साथ सक्रिय रहे
इमरत भोई कोंडवाला
- गाँव मीराकोटा ,तामिया
- 18 वर्ष की आयु में, वह अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान दे दिया।
- उनके पिता का नाम हरदयाल और माता का नाम पुलिया बाई था
- इमारत भोई ब्रिटिश देना की परवाह किए बिना स्वतंत्रता सेनानी को रसद पहुंचाने थे
- इमरत की शहादत के बाद जग्गू ,राधे सरमन , देनवा , करिया ,दाना ,भाटू ,नन्ही आदि ने उसी लगन से उनका काम संभाल
सीताराम कंवर
- मध्य प्रदेश के तत्कालीन पश्चिम निर्माण के बड़वानी रियासत परिवार में क्रांतिकारी सीताराम कंवर का जन्म हुआ सीताराम कंवर जबलपुर से शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह के गुप्तचर सेना के प्रमुख थे
- 1857 के युद्ध में अंग्रेजों से लोहा लेते समय शहीद हुए अंग्रेजों ने धोखे से सीताराम को गोली मरवा दी थी
- इस आदिवासी वीर योद्धा ने 1857 के आंदोलन तक आदिवासी समाज की नई दिशा दी
शाहिद मुद्दे बाई
- जंगल सत्याग्रह अंतर्गत मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के तुरिया गांव में घास काटकर सत्याग्रह चलाया
- टुरिया कांड में मुडेडे बाई नेतृत्व करते हुए शहीद हुए
रघुनाथ सिंह मंडलोई
- रघुनाथ सिंह मंडलोई होलकर राज्य के जमींदार थे और आदिवासियों में इनका विशेष प्रभाव था
- 1857 में तात्या टोपे जब निर्माण आए खरगोन तो मंडलोई की मुलाकात तात्या टोपे से हुई और वह उनके प्रभाव में आकर रघुनाथ से मंडलोई में 1857 के आंदोलन में भाग लिया
- इन्होंने कहीं भील आदिवासियों को एकत्र करके टाटा वरुण में आंदोलन किया और कप्तान रह स्केटिंग से लड़ाई करते हुए शहीद हुए
जग्गू सिंह उईके
- जग्गूसिंह को जंगल सत्याग्रह में उनके गतिविधियों के कारण 3 साल के लिए कारावास में भेज दिया गया।
- 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 में गांधी जी के “करो या मरो” के नारे को लोगों के बीच वाला या और कहीं बार जेल यात्राएं भी की
- आजादी के बाद उन्होंने विधायक के तौर पर काम किया उनके काम के कारण उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने सम्मानित किया था
मंजू ओझा
- जन्म ग्राम रतभारी
- बैतूल जिले के विभिन्न आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
- 1942 के ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन में, बैतूल के मंजू ओझा ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी कार्यों में हिस्सा लिया।
- उन्हें नवंबर 1942 में गिरफ्तार किया गया और उन्हें 20 जुलाई 1944 तक नरसिंहपुर जेल में कैद रखा गया, जहां उन्हें कठिनाईयों का सामना करना पड़ा।
- उनकी मृत्यु 28 अगस्त 1981 को घोड़ा डूंगरी जिला बैतूल में हुई थी
बिरजू नायक
- मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के राजपुर पलसूद के पास मातलि सावरदा में जन्म हुआ
- बिरजू नायक सदैव गरीब किसानों एवं पीड़ित लोगों के हितों के लिए संघर्ष करते रहे
- 1857 में बहादुर बिरजू नायक ने आदिवासी योद्धाओं खर्चा नायक टंट्या भील और बीमा नायक के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ कई विद्रोह का नेतृत्व किया और ब्रिटिश सरकार के लंबे समय से चली आ रही समाज राज्यवादी नीति के नींव हिला दी
विरसा गोंड
- मध्य प्रदेश के नर्मदा घाटी क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम का मार्गदर्शन करने वाले मुख्य क्रांतिकारी और आदिवासी प्रेरणास्त्रोत विरसा गोंड थे।
- 9 अगस्त 1942 में बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी शाहपुर क्षेत्र में क्रांतिकारियों का नेतृत्व करते हुए विरसा गोंडा ने रेलवे स्टेशन पर आंदोलन किया
- उसे आदिवासी समुदाय ने रेल की पटरिया उखाड़ पुलिस थाने एवं डिपो में आग लगा दी
- पुलिस एवं वन विभागों द्वारा बिना चेतावनी के गोली चलाने के कारण गोली लगने से विरसा गोंद की मृत्यु हो गई