GI Tag क्या है (What is GI Tag ?)
- GI Tag का full Form : Geographical Indication Tag ( भौगोलिक संकेतक ) होता है | यह किसी उत्पाद की विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति , विशेष गुणवत्ता और विशेष पहचान के आधार पर दिया जाता है | GI Tag उत्पाद की गुणवत्ता व विशेषता को दर्शाता है |
- जैसे – Gi tag of MP चंदेरी साड़ी ,दार्जिलिंग के चाय और कोलकाता की मिष्टि दोई आदि
- GI Tag के द्वारा किसी उत्पाद को एक अलग पहचान दी जाती है | GI Tag एक तरह का लेबर टैग होता है जो किसी वस्तु विशेष को या किसी प्रोडक्ट को भौगोलिक पहचान या स्थाई पहचान देता है |
GI Tag किन उत्पादों को मिलता है
- कृषि उत्पादन ( Agriculture Product)
- खाद्य सामग्री (Food Stuff )
- हस्तशिल्प (Handicraft)
- निर्माण उत्पाद (Manufacture Product)
GI Tag कौन देता है
- GI Tag प्राप्त करने के लिए controller general of patents design and trade marks (CGPDTM) के ऑफिस में अप्लाई करना होता है|
- इसका मुख्यालय चेन्नई में है जो वाणिज्य मंत्रालय के डिपार्मेंट आफ इंडस्टरीज प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड (DPIIT) के अधीन आता है |
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर GI Tag
- (TRIPS) Trade related aspects of intellectual property rights WTO का एक एग्रीमेन्ट है इसमें जो भी सदस्य देश है उनके मध्य समझौता है कि वे एक दूसरे GI Tag का सम्मान करेंगे |
- लिस्बन एग्रीमेंट के तहत भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गी टैग के से संबंधित विवादों का निपटारा किया जाता है |
GI टैग अधिनियम (GI Tag Act)
- GI TAG को कानूनी रूप से कार्यान्वित करने के लिए GI Tag Act को लागू किया गया है
- दिसंबर 1999 में भारत में अद्वीतीय वस्तुओं के लिए गी टैग के पंजीकरण प्रदान करने और उन्हें बेहतर सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से भारत की संसद द्वारा भौगोलिक संकेत तक पंजीकरण और संरक्षण अधिनियम 1999 में { Geographical Indications of Goods Registration and Protection Act ,1999 } पारित किया गया था
- यह अधिनियम 15 सितंबर 2023 को लागू हुआ
- पहला GI Tag 2004 में दार्जिलिंग की चाय को दिया गया था
- GI Tag 10 वर्ष तक मान्य रहता है | अगर किसी वस्तु को जी ऐ टैग मिल जाता है तो Tag का लाभ 10 वर्षों तक मिलता रहता है लेकिन 10 वर्ष पूरे हो जाने के बाद GI Tag को वापस रिन्यू करना पड़ता है
- कई बार यह गी टैग 2 राज्यों को एक साथ दिया जाता है क्योंकि उन दोनों राज्यों में एक तरह के वस्तुओं का उत्पादन होता है |
- जैसे चावल की पैदावार में पंजाब और हरियाणा दोनों को ही गी टैग दिया जाता है |
GI Tag के फायदे (GI tag Benefit)
- GI Tag के द्वारा वास्तु के नक़ल पर रोकथाम लगाया जाता है, एवं यह एक भौगोलिक क्षेत्र के महत्व को बढ़ा देता है |
- GI Tag भारतीय स्थानीय वस्तु को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में भी मदद करती है जिससे उसकी बिक्री और निर्यात बढ़ जाता है |
- यह ग्राहकों को उस उत्पाद की प्रमाणिकता के बारे में भी सुविधा प्रदान करता है |
- कृषकों को फायदा मिलता है |
- पर्यटन को बढ़ावा मिलता है |
भौगोलिक संकेतक वाक्य – “अतुल्य भारत की अमूल्य निधि “
MP Gi tag list in Hindi
Madhya Pradesh भौगोलिक संकेतक (GI Tag) list
क्र. सं. | वर्ष | उत्पाद | क्षेत्र |
---|---|---|---|
1 | 2005 – 2006 | चंदेरी की साड़ी | अशोक नगर |
2 | 2008 – 2009 | चमड़े के खिलौने | इंदौर |
3 | 2008 – 2009 | बाघ प्रिंट | धार |
4 | 2008 – 2009 | बेल मेटल वेयर | दतिया और टीकमगढ़ |
5 | 2012 – 2013 | महेश्वरी साड़ी | खरगौन |
6 | 2014 – 2015 | रतलामी सेव | रतलाम |
7 | 2014 – 2015 | नागपुर संतरा | महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश (संयुक्त रूप से छिंदवाड़ा और नागपुर) |
8 | 2018 – 2019 | कड़कनाथ मुर्गा | झाबुआ |
9 | 2021 | चिन्नोर चावल | बालाघाट |
10 | 2021 – 2022 | महोबा देशवारी पान | उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश |
11 | 2023 | मुरैना गजक | मुरैना |
12 | 2023 | पत्थरशिल्प | जबलपुर (भेड़ाघाट) |
13 | 2023 | गोंडी चित्रकला | डिंडोरी |
14 | 2023 | लोह हस्तशिल्प | डिंडोरी |
15 | 2023 | ग्वालियर कालीन | ग्वालियर |
16 | 2023 | वारासिवनी की साड़ी | बालाघाट |
17 | 2023 | शरबती गेहूं | विदिशा सीहोर |
18 | 2023 | बाटिक प्रिंट | उज्जैन |
19 | 2023 | सुन्दरजा आम | रीवा |
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Madhya pradesh में अभी तक कुल 19 उत्पादों को Gi tag प्रदान किया जा चूका है| यह सूचि 2023 तक की है जिसकी सम्पूर्ण जानकारी निम्नलिखिती है अगर आगे भी MP के उत्पादों को GI Tag प्रदान किया जाता है तो आपको उनकी भी सम्पूर्ण जानकारी प्रदान की जाएगी
चंदेरी साड़ी – अशोक नगर (Gi tag of MP)
- चंदेरी साड़ी भारतीय सार्वजनिक समाज में महिलाओं के बीच एक पसंदीदा पहनावा है | और इसका महत्वपूर्ण स्थान है |
- चंदेरी जो की अशोक नगर जिले की तहसील है वही इन चंदेरी साडीयों का निर्माण किया जाता है
- चन्देरी साडी खटका जो की एक स्वनिर्मित मशीन है के द्वारा तैय्यार की जाती है चंदेरी के लोगो का मुख्य व्यवसाय है |
- कहा जाता है चंदेरी फेब्रिक की स्थापना भगवान श्री कृष्णा की भुआ के बेटे शिशुपाल द्वारा किया गया था
- चंदेरी में आपको 3 तरह के फैब्रिक्स मिलते है 1 ) जिसमें प्योर सिल्क 2 )चंदेरी कॉट 3 ) सिल्क कॉटन है |
- सन 930 के आसपास बुनकरों ने जापानी सिल्क का का इस्तमाल कॉटन के साथ किया जाने लगा कपड़े के ताने में जापान का सिल्क और बाने में कॉटन को रखकर साड़ियां बनाई जाने लगीं.
- इसकी अनूठी किस्म व कारीगरी को देख कर इसे year 2005 -2006 में इसे GI Tag प्रदान किया गया
- इस प्रकार यह मध्य प्रदेश की प्रथम GI tag प्राप्त करता बानी
सुंदरजा आम – रीवा (Gi tag of MP)
- अपनी अनूठी मिठास के लिए प्रसिद्ध सुन्दरजा आम रीवा जिले के गोविंदगढ़ तहसील में उत्पादित किया जाता है |
- भंडारण क्षमता सामान्य तापमान पर 10 से 12 दिन एवं फ्रीजिंग में 30 दिन तक की है ।
- सुन्दरजा आम में बिना रेशे और नेचुरल शुगर की मात्रा बहुत कम होती है |
- इसकी प्रजाति 2 भी विकसित हो गयी है |
- इसकी खास बात यह है की इसे शुगर वाले मरीज (diabetes patient) भी खा सकते है |
- इसकी मिठास के कारण ही इसे देश नहीं विदेशो में भी पहचाना जाता है |
- इसकी प्रसिद्धि और खासियत क लिए ही इसे 2023 में GI Tag प्रदान किया गया |
महेश्वरी साड़ी – खरगौन (Gi tag of MP)
- महेश्वरी साड़ियों की इतिहासिक उत्पत्ति लगभग 250 वर्ष पूरानी है।
- होल्कर वंश की प्रसिद्ध शासका देवी अहिल्याबाई होल्कर ने 1767 में महेश्वर में एक छोटे उद्योग की स्थापना की थी
- माहेश्वरी साड़ी अपने अद्वितीय ज्यामितीय नक्काशीदार डिजाइन और विविध रंगों के संयोजन के साथ एक राजसी वैभव और आत्मसम्मान का प्रतीक है
- माहेश्वरी साड़ियाँ फर्म लूम पर तैयार किया जाता है पहले इसे बनाने के लिए जमीन में खुदाई की गई करघे पर बनाया जाता था ।
- माहेश्वरी साडी के कई प्रकार है
- गर्भा सिल्क साड़ी, प्योर सिल्क साड़ी, नीम सिल्क साड़ी, कटान साड़ी, पचास साड़ी, टिशू साड़ी, मर्सराइज्ड रोड डिजाइन साड़ी, मर्सराइज्ड चेक डिजाइन साड़ी इत्यादि।
- महेश्वर में निर्मित होने वाली महेश्वरी साड़ियाँ ने देशभर व विदेशो में भी में अपनी पहचान छोड़ी है
- प्रत्येक साड़ी को उसके डिज़ाइन, पैटर्न, और रंग संयोजन के आधार पर बनाने में 3 से 15 दिन लगते हैं।
- माहेश्वरी साड़ी का Application no 197 और इसे 2012-13 में GI Tag प्रदान किया गया
बाटिक प्रिंट – उज्जैन(Gi tag of MP)
- यह एक प्राचीन कला है जो मोम की रंगाई और छपाई के माध्यम से किया जाता है
- माना जाता है कि इसकी प्रथा देशों जैसे कि मिस्र, जापान, और भारत में 2000 से अधिक वर्षों से है।
- भारतीय मुगल काल के दौरान, प्राचीन काला बाटिक ने मध्य प्रदेश में हथकरघा और शिल्प उद्योग के दरवाजे पर दस्तक दी। आज, भेरूगढ़ गांव में, मुद्रण कार्य के करीब 800 पुरुष और महिलाएं जुड़े हैं।
- आज भी धर्म नगरी उज्जैन, विशेष कर भैरवगढ़ (भेरूगढ़), में लगभग 500 सालों से वहां के स्थानीय कलाकारों द्वारा यह कार्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी किया जाता रहा है
- बाटिक प्रिंट कपड़ों पर उनके मोहक और सुंदर डिज़ाइनों के लिए मशहूर है।
- भारत में, बाटिक को लगभग हर जगह लोकप्रिय माना जाता है, और इसकी पहचान सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि श्रीलंका, इंडोनेशिया जैसे कई अन्य देशों में भी है।
- वर्ष 2023 में उज्जैन भेरूगढ़ के बाटिक को GI Tag प्रदान किया गया है
ग्वालियर के कालीन (Gi tag of MP)
- ग्वालियर के कालीनों में डिजाइन फारसी कालीन डिजाइनों से प्रभावित है
- मुग़ल जब भारत ए थे तब यह कालीन का concept ले कर भारत आये थे
- ग्वालियर के कालीन को शिल्पकारों के अनुसार उनके आकर्षक पुष्प पैटर्न के लिए प्रसिद्ध माना जाता है। इसके किनारों या छोटे भुजाओं में धागों के गुच्छे होते हैं।
- ग्वालियर कालीन को Madhya Pradesh के अन्य उत्पादों के साथ 2023 MP GI Tag प्रदान किया गया था
मुरैना की गजक (Gi tag of MP)
- मुरैना की गजक का इतिहास देखे तो यह 17 वी शताब्दी मुग़ल काल से है जब औरंगजेब की सत्ता थी |
- मुरैना की गजक इसकी निर्माण प्रक्रिया व स्वाद के लिए बहुत ही पसंद करी जाती है |
- गजक तिल व गुड को मिला कर बनायीं जाती है और यह मुरैना शहर में बनायीं जाती है |
- 2023 में इसने अपनी पहचान अंतराष्ट्रीय स्तर तक बना चुकी है |
- इसकी निर्माण प्रक्रिया काफी लम्बी है 10 -12 Kg गजक बनाने में 15 घंटे का समय लगता है |
- यह बीमारी की विरोधी शक्ति बढ़ाती है।|
- 2023 में मुरैना की गजक को GI Tag प्रदान किया गया |
कड़कनाथ मुर्गा – झाबुआ (Gi tag of MP)
- कड़कनाथ मुर्गे को काली मासी भी कहा जाता है कड़कनाथ मुर्गे में मेलानिन वर्णन पाया जाता है और मेलानिन वर्णन के कारण इसका रंग काला होता है
- सामान्य मुर्गों में खून लाल रंग का होता है परंतु इस मुर्गी के पंख, मांस ,हड्डियां खून सभी काले कलर के होते हैं
- कड़कनाथ मुर्गा औषधि गुना से युक्त होता है तथा यह मुर्गा अन्य प्रजातियों के मुर्गो से पौष्टिक और सेहत के लिए लाभकारी होता है
- कड़कनाथ मुर्गी में प्रोटीन की मात्रा भरपूर होती है अन्य मुर्गी के अपेक्षा इस मुर्गे में प्रोटीन 25% पाया जाता है
- इसमें आयरन भी अधिक मात्रा में पाई जाती है और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम पाई जाती है
- कड़कनाथ मुर्गा मध्य प्रदेश के झाबुआ, अलीराजपुर और धार के कुछ भागों में पाया जाता है
- छत्तीसगढ़ द्वारा भी कड़कनाथ मुर्गी पर गी टैग की मांग की जा रही है लेकिन अंतत मध्य प्रदेश के को मान्यता दी गई
- कड़कनाथ मुर्गे को 2018-19 में GI Tag प्रदान किया गया